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सिकंदर और पोरस का युद्ध,झेलम का युद्ध,इस तरह हुआ था पोरस-सिकंदर युद्ध

 नमस्कार दोस्तों भारत के इतिहास में सिकंदर और पोरस  का युद्ध बहुत ही महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है इस घटना को कवि ने अपने शब्दों में दोहराया है यह परीक्षार्थियों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण कविता साबित होगी इसे बहुत ही ध्यान से पढ़ें धन्यवाद l.                         


                                              कविता का शीर्षक है "वीर पुरुरवा".                                                                                              वीर भुजाओं में जिसकी बहती थी झेलम की लहरें उस वीर पुरवा के भारत में जगह-जगह झंडे ठहरे कुल किया कलंकित आंधी ने भारत का बेटा लाल हुआ भारत मां के यवन का वैभव जैसा हाल हुआ यह देख पूर्वक रद्द हुआ झेलम का पहला युद्ध हुआ पर हाय विधाता मौके पर क्या उसके भाग्य विरुद्ध हुआ वह भारत का रखवाला था जिसे मातृभूमि ने पाला था बैरी सेना की खातिर तो वह घोर हलाहल प्याला था ताबीर सिकंदर बोलो क्यों कायरता से फिर वार किया धोखे में रखकर ही उसने क्यों झेलम को था पार किया अगर वीर सिकंदर होता तो रणभेरी पर वह लड़का क्यों चुपके से वह अंधकार की ओर ले आगे बढ़ता फिर भी ना साहस टूटा जब धनुष बाण जब धनुष हाथ से छूट बारिश की बूंदे थमी नहीं आंखों में बिल्कुल नंगी नहीं पर गज के दाना बल से पूर्व राज्य का सपना टूटा यह देख मैं भी टूट गया नैनो से आंसू छूट गया थी तरित क्रूर कंदन करती मानव सूरज भी फूट गया बुझ गई रश्मिया तारों की जैसे आभा को लूट गया भारत के भाग्य विधाता का मानव गौरव ही रूठ गया अपलक था भूमि निहार रहा था अरमानों को मार रहा भारत का बेटा रन की सब मर्यादाओं को था जान रहा तब दुष्ट सिकंदर बोल पड़ा बोलो कैसा व्यवहार करूं एक शस्त्र ही ने छतरी पर बोलो मैं कैसे वार करूं अब तुम्हारा धूमिल है फिर कैसे तेरा मान करूं मैं वीर सिकंदर यूनानी कदमों में तुम्हें झुका लूंगा तेरे इस प्यारे भारत को मैं छिन्न-भिन्न कर जाऊंगा तकदीर पुरवा बोल पड़ा वाणी में विश्व भूगोल पड़ा मैं राजा हूं तुम राजा हो राजा ऐसा व्यवहार करो आओ सर मेरा हाजिर है पूरे अपने अरमान करो पर मत भूलो एक पुरवा लाखों हैं पछताओगे गज गज भर भूमि की खातिर तुम अपने प्राण गवा ओगे भारत की सीमा झेलम को मत मान सिकंदर दम भी तू इतिहास कलंकित करके क्या सुख पा जाएगा हम भी तो संभव विकार भर मन में वह जो वह जंग कहां कर पायेगा है खरी कसौटी जीवन की पल भर में वह मर जाएगा है विश्व विजय कोई खेल नहीं पल भर में जो पा जाएगा भारत का बच्चा-बच्चा इस रण में तुझ से टकराएगा क्या जीत लिए कुछ दो देश तो भारत भी तुम से डर जाएगा मत भूलनी रे तू पागल है बिना वस्त्र लौट घर जाएगा हे फिलिप पुत्र तू बच्चा है रण करने में तू कच्चा है झेलम का पानी कहता है वापस जाने में अच्छा है यह हर बेला का युद्ध नहीं भाषा भी तेरी सुध नहीं चुटकी में तू मिट जाएगा भारत का भाग्य विरुद्ध नहीं या नहीं सौंप दिया ना भूले बैक्ट्रिया मिश्र सिस्तान नहीं झेलम के आगे बढ़ा अगर हो जाएगा धूमिल मान वही उसका यर काहे साथ तुझे लज्जा आती जिसे देख मुझे जो अपनी मां का हो न सका वह क्या मानेगा साथ तुझे उसे सच्ची गुप्त की वाणी क्या कायर भी है अभिमानी क्या दम भी उस आम भी की कटुता का कोई और बनेगा साहनी क्या कुछ याद करो उस आस्तीन को रण में तेरे झंडे उड़ा लिए उसकी उत्साही सेनानी तेरे थे छक्के छुड़ा लिए स्पेशल ओके साहस की सेना ने तेरी जान लिया आगे जो विकट समस्या है उसको अब से पहचान लिया मसाज अशकों के आगे साहस था तेरा चूर हुआ विश्व विजई बनने का नशा तेरा कपूर हुआ जिस देश की अब लाऊं ने भी तुझ पर खुलकर था वार किया फिर बना शिखंडी कायर तू उनका भी संघार किया कर दिया कलंकित रण को क्यों ऐसा अच्छा काम किया इस त्रिभुवन में क्यों तूने अपने गौरव को बदनाम किया राजन की बातें सुन लिरिक्स निर यार काश फिर बोल पड़ा अपने स्वामी की निंदा सुन उसका था वाजिब क्रोध पड़ा अति हो गई सहा अब तक आत्मीय तेरा बकवास लूंगा खींची भी आगे किया एक भी अब अपवाद रक्त नहीं सुखा है अब तक ना ही मरा है मेरा जो स्वयंवर तो भाषा पर तुम और संभालो अपने होश चली गइले मुक्त आभूषण चंद्रमुखी रजनी मुख्य मलान मानव सा पूर्व के नव में आकर बिखर गई मृदुल मुस्कान बोले यूनानी खेल मुझे है अपने मंत्री पर प्रोग्राम किंतु बातें उचित न लगती बोली है तुमने जो आज हरि स्वामी निंदा सुनने से लगता गोवर्धन से बढ़कर पार्क इससे उसे ना सुनना होता बैठे रह निष्क्रिय चुपचाप यदि बस चले काटजू वाले याले निंदक जी सुतार नहीं मूंदकर कान वहां से चले तुरंत तुरंत दे निसर बोले सिकंदर शांत भाव से कादीपुर की बात बोले उत्तेजित होने पर स्थिति बन जाती अज्ञात स्वार्थ हानि ईर्ष्या बस होने से हो जाते मानव अंग गुण भी दोष दिखाई देते यस सौरभ देते दुर्गंध सुनी सुनाई स्वयं न देखी कहते बातें मित्र जोड़ इसीलिए पूर्व राज्य हां तुम प्रस्तुत करते सत्य मरोड़ पूर्व राज्य संतुष्ट हुए सुन अजीत शत्रु का मृदुल प्रvbलाप बोले युक्ति तुम ही बताओ जिससे दुष्ट करूं अनुसार भरे कंठ से गले लगाया वीर सिकंदर ने पूर्व राज देश जीतने वाले ने दिल जीता देखो कैसे आज कोटि-कोटि कंठ ओं से निकली वीरों की फिर जय जयकार मिर्जा मिटा हृदय कार्मेल चतुर्दिक दूर हुए सब के सुविचार कलेश विकार साम दाम या भेद नीति से नहीं दिलों को सत्यजीत उन्हें इसने स्पंदित कर करो अटक अटक राज्य भी उठो वीर लेखक हाथ में करो धरा पर तुम अधिकार वसुंधरा हेवीर भोंकते सत्य ही है सभी प्रकार दोस्तों इस कविता को

Comments

Amar pandit said…
this is puru legend of India

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