भारतीय अर्थव्यवस्था का इतिहास
ऐतिहासिक रूप से भारत एक बहुत विकसित आर्थिक व्यवस्था थी जिसके विश्व के अन्य भागों के साथ मजबूत व्यापारिक संबंध थे । औपनिवेशिक युग ( 1773-1947 ) के दौरान ब्रिटिश भारत से सस्ती दरों पर कच्ची सामग्री खरीदा करते थे और तैयार माल भारतीय बाजारों में सामान्य मूल्य से कहीं अधिक उच्चतर कीमत पर बेचा जाता था जिसके परिणामस्वरूप स्रोतों का द्धिमार्गी ह्रास होता था । इस अवधि के दौरान विश्व की आय में भारत का हिस्सा 1700 ए डी के 22.3 प्रतिशत से गिरकर 1952 में 3.8 प्रतिशत रह गया । 1947 में भारत के स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात अर्थव्यवस्था की पुननिर्माण प्रक्रिया प्रारंभ हुई । इस उद्देश्य से विभिन्न नीतियॉं और योजनाऍं बनाई गयीं और पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से कार्यान्वित की गयी । अर्थशास्त्र और अर्थव्यवस्था:-अर्थशास्त्र मानव की आर्थिक गतिविधियों का अध्ययन करता है, "मानव द्वारा संपन्न वैसी सारी गतिविधियां जिन में आर्थिक लाभ या हानि का तत्व विद्यमान हो आर्थिक गतिविधियां कहीं जाती हैं"| अर्थव्यवस्था एक अधूरा शब्द है अगर इसके पूर्व किसी देश या किसी क्षेत्र विशेष का नाम ना जोड़ा जाए, वास्तव में जब हम किसी देश को उसके समस्त आर्थिक क्रियाओं के संदर्भ में परिभाषित करते हैं तो उसे अर्थव्यवस्था कहते हैं | आर्थिक क्रिया किसी देश के व्यापारिक क्षेत्र, घरेलू तथा सरकार द्वारा दुर्लभ संसाधनों के प्रयोग, वस्तुओं तथा सेवाओं के उपभोग, उत्पादन तथा वितरण से संबंधित है l अर्थव्यवस्था की परिभाषा:-न्यून, मध्य तथा उच्च आय ,विश्व बैंक के वर्गीकरण के अनुसार प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय के आधार पर विश्व की अर्थव्यवस्थाओं को निम्न चार भागों में बांटा गया है| नीचे वाली , मध्य आय वाली , उच्च मध्य आए वाली, ऊंचाई वाली निजी क्षेत्र और बाजार के सापेक्ष | राज्य सरकार की भूमिका के आधार पर अर्थव्यवस्थाओं का वर्गीकरण तीन श्रेणियों में किया जाता है पहला पूंजीवादी अर्थव्यवस्था इस आवर अर्थव्यवस्था भी क्या उत्पादन करना है? कितना उत्पादन करना है?, और उसे किस कीमत पर बेचना है? यह सब बाजार तय करता है| इसमें सरकार की कोई आर्थिक भूमिका नहीं होती है| दूसरा राज्य अर्थव्यवस्था इस अर्थव्यवस्था की उत्पत्ति पूंजीवादी अर्थव्यवस्था की लोकप्रियता के विरोध स्वरूप हुआ, इसमें उत्पादन ,आपूर्ति और कीमत सब का फैसला सरकार द्वारा लिया जाता है, ऐसी अर्थव्यवस्थाओं को केंद्रीकृत नियोजित अर्थव्यवस्था कहते हैं जो गैर बाजारी अर्थव्यवस्था होती है ,राज्य अर्थव्यवस्था की दो अलग-अलग शैली नजर आती है| सोवियत संघ की अर्थव्यवस्था को समाजवादी अर्थव्यवस्था कहते हैं | जबकि 1985 से पहले चीन की अर्थव्यवस्था को साम्यवादी अर्थव्यवस्था कहते हैं समाजवादी अर्थव्यवस्था में उत्पादन के साधनों पर सामूहिक नियंत्रण की बात शामिल थी, और अर्थव्यवस्था को चलाने में सरकार की बड़ी भूमिका थी ,वही साम्यवादी अर्थव्यवस्था में सभी संपत्तियों पर सरकार का नियंत्रण था, और श्रम संसाधन भी सरकार के अधीन थे , निजी अर्थव्यवस्था इसमें कुछ लक्षण राज्य अर्थव्यवस्था के मौजूद होते हैं, तो कुछ लक्षण पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के, यानी सरकारी एवं निजी क्षेत्र का अस्तित्व द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद उपनिवेशवाद के चंगुल से निकले दुनिया के कई देशों ने मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाया इनमें भारत मलेशिया एवं इंडोनेशिया जैसे देश शामिल हैं बंद अर्थव्यवस्था वह अर्थव्यवस्था है जिसमें ना तो निर्यात और ना ही आयात होता है यानी ऐसी अर्थव्यवस्था काशेष विश्व से कोई संबंध नहीं होता है | अर्थव्यवस्था के क्षेत्र:-मानव के वे तमाम क्रिया कलाप जो आय सृजन में सहायक होते हैं, उन्हें आर्थिक क्रिया की संज्ञा दी जाती है, आर्थिक क्रिया किसी देश के व्यापारिक क्षेत्र घरेलू क्षेत्र तथा सरकार द्वारा दुर्लभ संसाधनों के उपयोग , वस्तुओं तथा सेवाओं के उपयोग, उत्पादन तथा वितरण से संबंधित है, अर्थव्यवस्था की आर्थिक गतिविधियों को तीन श्रेणियों में बांटा गया है जिन्हें आर्थिक व्यवस्था का क्षेत्र कहा जाता है पहला प्राथमिक क्षेत्र:-अर्थव्यवस्था कार्यक्षेत्र प्रत्यक्ष रूप से पर्यावरण पर निर्भर होती है , इन गतिविधियों का संबंध भूमि जल वनस्पति और खनिज जैसे प्राकृतिक संसाधनों से है कृषि पशुपालन मत्स्य पालन खनन और उनसे संबंधित गतिविधियों को इसके अंतर्गत रखा जाता है इसमें संरक्षण की प्रकृति को रेड कॉलर जॉब के जरिए संकेत किया जाता है द्वितीय क्षेत्र:-अर्थव्यवस्था का वह क्षेत्र जो प्राथमिक क्षेत्र के उत्पादों को अपनी गतिविधियों में कच्चे माल की तरह उपयोग करता है ,द्वितीय क्षेत्र कहलाता है जैसे लोहा इस्पात उद्योग वस्त्र उद्योग वाहन इलेक्ट्रॉनिक आदि वास्तव में इस क्षेत्र में विनिर्माण कार्य होता है, इस कारण ही से औद्योगिक क्षेत्र भी कहा जाता है , इसमें लगे कुशल श्रमिकों को व्हाइट कॉलर जॉब के अंतर्गत स्थान दिया जाता है, जबकि उत्पादन प्रक्रिया में प्रत्यक्ष रूप से संलग्न श्रमिकों को ब्लू कॉलर जॉब के अंतर्गत रखा जाता है, तृतीय क्षेत्र:-इस क्षेत्र में विभिन्न प्रकार की सेवाओं का उत्पादन किया जाता है जैसे बीमा बैंकिंग चिकित्सा शिक्षा पर्यटन आदि इस क्षेत्र को सेवा क्षेत्र के रूप में भी जाना जाता है तृतीय क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था के सकल राष्ट्रीय उत्पाद में सबसे अधिक योगदान करता है भारतीय अर्थव्यवस्था एक श्रम अधिक क्या वाली अर्थव्यवस्था है! आर्थिक समृद्धि एवं आर्थिक विकास:-आर्थिक समृद्धि से अभिप्राय किसी समय अवधि में किसी अर्थव्यवस्था में होने वाली वास्तविक आय से है सामान्यता यदि सकल राष्ट्रीय उत्पाद जीएनपी सकल घरेलू उत्पाद जीडीपी एवं प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि हो रही हो तो हम कहते हैं कि आर्थिक समृद्धि हो रही है अर्थात आर्थिक समृद्धि उत्पाद की वृद्धि से संबंधित है जिसमें की परिणाम परिमाणात्मक परिवर्तन होते हैं जो कि श्रम शक्ति उपभोग पूंजी और व्यापार की मात्रा में प्रसार के साथ होता है किसी देश की आर्थिक समृद्धि का सर्वाधिक उपयुक्त मापदंड प्रति व्यक्ति वास्तविक आय होता है आर्थिक विकास:-आर्थिक विकास की धारणा आर्थिक समृद्धि की धारणा से अधिक व्यापक है , आर्थिक विकास सामाजिक सांस्कृतिक आर्थिक गुणात्मक एवं परिणाम अक्स अभी परिवर्तनों से संबंधित है, आर्थिक विकास तभी कहा जाएगा जब जीवन की गुणवत्ता में सुधार हो, आर्थिक विकास की माप में अनेक चल संपत्तियां अनेक चर सम्मिलित किए जाते हैं, जैसे आर्थिक राजनैतिक तथा सामाजिक संस्थाओं के स्वरूप में परिवर्तन शिक्षा तथा साक्षरता दर जीवन प्रत्याशा पोषण का स्तर स्वास्थ्य सेवाएं प्रति व्यक्ति उपभोग वस्तुएं तथा आर्थिक विकास मूलतः मानव विकास ही है ,भारतीय मूल के नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री प्रोफेसर अमर्त्य सेन ने आर्थिक विकास को पुरस्कार विजेता आर्थिक विकास को अधिकारिता तथा क्षमता के विस्तार के रूप में परिभाषित किया है, जिसका तात्पर्य जीवन ,पोषण, आत्मसम्मान तथा स्वतंत्रता है, महबूब उल हक ने आर्थिक विकास को गरीबी के विरुद्ध लड़ाई के रूप में परिभाषित किया चाहे वह गरीबी किसी की हो किसी रूप की हो किसी देश का आर्थिक विकास प्राकृतिक संसाधन पूंजी निर्माण एवं बाजार के आधार पर निर्भर करता है , आर्थिक विकास की माप:-विभिन्न देशों के आर्थिक विकास की मांप तथा विभिन्न देशों के आर्थिक विकास की तुलनात्मक स्थिति ज्ञात करने के पांच दृष्टिकोण मिलते हैं पहला आधारभूत आवश्यकता प्रत्यागमन इसका प्रतिपादन विश्व बैंक ने किया दूसरा जीवन की भौतिक गुणवत्ता निर्देशांक प्रत्यागत या गम इसका प्रतिपादन मॉरिस डेविस मौर्य ने वर्षी डेवलपमेंट काउंसिल के कहने पर किया, इस विधि में किसी भी देश के रहन-सहन के स्तर यानी आर्थिक विकास की तुलना के लिए 3 आंकड़े आंकड़ों शिशु मृत्यु दर वयस्क साक्षरता दर एवं 1 वर्ष आयु की जीवन प्रत्याशा औसत मान का उपयोग किया जाता है तीसरा क्रय शक्ति समता विधि:-इस विधि का सबसे पहले प्रयोग सन 1993 ईस्वी में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने किया और आजकल विश्व बैंक की सी विधि का प्रयोग विभिन्न देशों के रहन-सहन के स्तर की तुलना के लिए कर रहा है विश्व विकास रिपोर्ट 2014 के अनुसार 2012 ईस्वी में क्रय शक्ति समता की दृष्टि से भारतीय अर्थव्यवस्था विश्व की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था है चौथा निवल आर्थिक कल्याण निवल आर्थिक कल्याण सकल राष्ट्रीय उत्पाद उत्पाद की छिपी लागत तथा आधुनिक नागरिक करण की कहानी की हानियां आकाश तथा ग्रहणी अवकाश तथा गर्मियों की सेवाएं सैमुअल्सन का यह मत है कि निवल आर्थिक कल्याण लोगों के जीवन निर्वाह की में सुधार की सही माफ करेगा इस धारणा का प्रयोग सबसे पहले दिल्ली तथा कब ने 1989 मे किया-पांचवा मानव विकास सूचकांक एचडीआई:-इस सूचकांक का प्रतिपादन 1990 में यूनाइटेड नेशंस डेवलपमेंट प्रोग्राम यूएनडीपी से जुड़े अर्थशास्त्री महबूब उल हक पाकिस्तान अमृत सेन भारत तथा उनके सहयोगियों ने किया मानव विकास सूचकांक एक सांख्यिकी सूचकांक है जिसमें जीवन प्रत्याशा शिक्षा और आए सूचकांकों को शामिल किया जाता है संयुक्त राष्ट्र द्वारा पहला मानव विकास सूचकांक 1990 में जारी किया गया था प्रत्येक वर्ष इसे संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम यूएनडीपी द्वारा प्रकाशित किया जाता है मानव विकास सूचकांक का उच्चतम माफ 1.0 तक हो सकता है/
1991 में भारत सरकार ने महत्वपूर्ण आर्थिक
सुधार प्रस्तुत किए जो इस दृष्टि से वृहद प्रयास थे जिनमें विदेश व्यापार
उदारीकरण, वित्तीय उदारीकरण, कर सुधार और विदेशी निवेश के प्रति
आग्रह शामिल था । इन उपायों ने भारतीय अर्थव्यवस्था को गति देने में मदद की तब
से भारतीय अर्थव्यवस्था बहुत आगे निकल आई है । सकल स्वदेशी उत्पाद की औसत
वृद्धि दर (फैक्टर लागत पर) जो 1951 - 91 के दौरान 4.34 प्रतिशत थी, 1991-2011 के दौरान 6.24 प्रतिशत के रूप में बढ़ गयी ।
कृषि:-
कृषि भारतीय
अर्थव्यवस्था की रीढ़ है जो न केवल इसलिए कि इससे देश की अधिकांश जनसंख्या
को खाद्य की आपूर्ति होती है बल्कि इसलिए भी भारत की आधी से भी अधिक आबादी
प्रत्यक्ष रूप से जीविका के लिए कृषि पर निर्भर है ।
विभिन्न नीतिगत उपायों के द्वारा
कृषि उत्पादन और उत्पादकता में वृद्धि हुई, जिसके फलस्वरूप एक बड़ी सीमा तक
खाद्य सुरक्षा प्राप्त हुई । कृषि में वृद्धि ने अन्य क्षेत्रों में भी अधिकतम
रूप से अनुकूल प्रभाव डाला जिसके फलस्वरूप सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था में और अधिकांश
जनसंख्या तक लाभ पहुँचे । वर्ष 2010 - 11 में 241.6 मिलियन टन का एक रिकार्ड खाद्य
उत्पादन हुआ, जिसमें सर्वकालीन उच्चतर रूप में गेहूँ, मोटा अनाज और दालों का उत्पादन हुआ
। कृषि क्षेत्र भारत के जीडीपी का लगभग 22 प्रतिशत प्रदान करता है । बाहय क्षेत्र:-
1991 से पहले भारत सरकार ने विदेश व्यापार और विदेशी निवेशों पर
प्रतिबंधों के माध्यम से वैश्विक प्रतियोगिता से अपने उद्योगों को संरक्षण
देने की एक नीति अपनाई थी ।
उदारीकरण के
प्रारंभ होने से भारत का बाहय क्षेत्र नाटकीय रूप से परिवर्तित हो गया । विदेश
व्यापार उदार और टैरिफ एतर बनाया गया । विदेशी प्रत्यक्ष निवेश सहित विदेशी
संस्थागत निवेश कई क्षेत्रों में हाथों - हाथ लिए जा रहे हैं । वित्तीय
क्षेत्र जैसे बैंकिंग और बीमा का जोरदार उदय हो रहा है । रूपए मूल्य अन्य
मुद्राओं के साथ-साथ जुड़कर बाजार की शक्तियों से बड़े रूप में जुड़ रहे हैं ।
आज भारत में 20 बिलियन अमरीकी डालर (2010 - 11) का विदेशी प्रत्यक्ष निवेश हो
रहा है । देश की विदेशी मुद्रा आरक्षित (फारेक्स) 28 अक्टूबर, 2011 को 320 बिलियन अ.डालर है । ( 31.5.1991 के 1.2 बिलियन अ.डालर की तुलना में )
भारत माल के
सर्वोच्च 20 निर्यातकों में से एक है और 2010 में सर्वोच्च 10 सेवा निर्यातकों में से एक है ।
संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, कोविड-19 और लॉकडाउन से प्रभावित 2020 में भारतीय अर्थव्यवस्था में 9.6 फीसदी की
गिरावट होने का अनुमान है। इसी रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय अर्थव्यवस्था 2021 में 7.3 फीसदी की वृद्धि
दर्ज कर सकती है।
2021 में भारत की जीडीपी
कितनी है?
भारत सरकार ने यह जानकारी दी है. सरकारी
डेटा के मुताबिक, जनवरी-मार्च 2021 तिमाही में भारत की जीडीपी ग्रोथ 1.6 फीसदी रही है. चौथी तिमाही की ग्रोथ
पिछली 2020-21 की अक्टूबर-दिसंबर तिमाही में 0.5 फीसदी की बढ़ोतरी से बेहतर रही .
भारत में कौन सी अर्थव्यवस्था अपनाई जाती है?
कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है जो न केवल इसलिए कि इससे
देश की अधिकांश जनसंख्या को खाद्य की आपूर्ति होती है बल्कि इसलिए भी भारत की आधी से भी अधिक आबादी प्रत्यक्ष
रूप से जीविका के लिए कृषि पर निर्भर है ।
आपको बता दे कि वर्तमान समय में भारत की जीडीपी 2.94 लाख करोड़ डॉलर (2.9 ट्रिलियन डॉलर) है जो विश्व में पांचवे स्थान पर आती है। हालाकि वैश्विक रैंकिंग में भारत की अर्थव्यवस्था पांचवें स्थान से फिसलकर सातवें नंबर पर आ गई थी. देश की अर्थव्यवस्था कैसे चलती है? भारत में कृषि, उद्योग और सेवा तीन अहम हिस्से हैं, जिनके आधार पर जीडीपी तय की जाती है. इसके लिए देश में जितना भी प्रोडक्शन होता है, जितना भी व्यक्तिगत उपभोग होता है, व्यवसाय में जितना निवेश होता है और सरकार देश के अंदर जितने पैसे खर्च करती है उसे जोड़ दिया जाता है दुनिया 2050 में सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं स्टडी के मुताबिक साल 2050 तक चीन की अर्थव्यवस्था अमेरिका को पछाड़ पहले स्थान पर पहुंच जाएगी। साथ ही भारत की अर्थव्यवस्था जापान को पीछे छोड़ तीसरे स्थान पर पहुंच जाएगी। मौजूदा समय में दुनिया में भारत की अर्थव्यवस्था पांचवें पायदान पर है। वहीं, फ्रांस और इंग्लैंड की अर्थव्यवस्था हमसे थोड़ा पीछे छठे स्थान पर है।....अमर पंडित की कलम से....
Comments
भारत में कौन सी अर्थव्यवस्था को अपनाया गया है?
भारतीय अर्थव्यवस्था की क्या विशेषता है?
आजादी की पूर्व संध्या का अर्थ क्या है?
sabhi prasn isme samil hain thanks