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जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर पार्ट 2


 मिर्जा भाइयों का विद्रोह:--
1566- 67 किंतु अकबर ने बड़ी कुशलता से इन समस्याओं को हल कर लिया अपनी कल्पनाशीलता से उसने अपने सामंतों की संख्या बढ़ाई, संन 1562 में आमेर के शासक से उसने समझौता किया, इस प्रकार राजपूत राजा भी उसकी ओर हो गए, इसी प्रकार उसने ईरान से आने वाले को भी बड़ी सहायता दी भारतीय मुसलमानों को भी उसने अपने कुशल व्यवहार से अपनी ओर कर लिया,  धार्मिक सहिष्णुता का उसने अनोखा परिचय दिया ,हिंदू तीर्थ स्थानों पर लगा कर जजिया हटा लिया गया 1563, इससे पूरे राज्य वासियों को अनुभव हो गया कि वह एक परिवर्तित नीति अपनाने में सक्षम है,  इसके अतिरिक्त उसने जबर्दस्ती युद्ध बंदियों का धर्म बदलवाना  भी बंद करवा दिया.,                                                                                                              मुद्रा:--  अकबर ने अपने शासनकाल में तांबे चांदी एवं सोना की मुद्राएं प्रचलित की , मुद्राओं के पृष्ठ भाग में सुंदर इस्लामिक छपाई हुआ करती थी , अकबर  ने अपने काल की मुद्राओं में कई बदलाव किए, उसने एक खुली टकसाल व्यवस्था की शुरुआत की, जिसके अंदर कोई भी व्यक्ति अगर टकसाल शुल्क देने में सक्षम था तो वह किसी दूसरी मुद्रा अथवा सोने से अकबर की मुद्रा को परिवर्तित कर सकता था , अकबर चाहता था कि उसके पूरे साम्राज्य में समान मुद्रा चले,                                                                      राजधानी स्थानांतरण:- पानीपत का द्वितीय युद्ध होने के बाद हेमू को मार कर अधिकार कर लिया, इसके बाद उसने अपने राज्य का विस्तार करना शुरू किया , और मालवा को 1562 में गुजरात को 1572 में पश्चिम बंगाल को 1574 में काबुल को 1581 में कश्मीर को 1586 में और खानदेश को 1601 में मुगल साम्राज्य के अधीन कर लिया,  अकबर ने इन राज्यों में प्रशासन संभालने हेतु 11 राज्यपाल नियुक्त किये , उसने निर्णय लिया कि मुगल राजधानी को आगरा के निकट फतेहपुर सीकरी ले जाया जाए जो साम्राज्य में थी,  एक पुराने  बसे ग्राम सीकरी को अकबर ने नया शहर बनवाया, जिसे अपनी जीत की खुशी में फतेहाबाद या फतेहपुर नाम दिया गया, जल्दी ही इसे पूरे वर्तमान नाम फतेहपुर सीकरी से बुलाया जाने लगा , यहां के अधिकांश निर्माण 14 वर्षों के ही हैं,  जिनमें अकबर ने यहां निवास किया,  शहर में साही आख्यान ,शाही  उद्यान, आरामगाह ए सामान, दरबारियों के लिए आवास तथा बच्चों के लिए मदरसे   बनवाए गए,  ब्लेयर और ब्लूम के अनुसार शहर के अंदर इमारतें दो प्रमुख प्रकार की हैं , सेवा इमारतें जैसे  टकसाल निर्माण या बड़ा बाजार जहां दक्षिण पश्चिम उत्तर पूर्व के लंबवत निर्माण हुए हैं, और दूसरा शाही भाग,  जिसमें भारत की सबसे बड़ी सामूहिक मस्जिद है, साथ ही आवश्यक तथा प्रशासकीय ईमारते हैं,  इसे दौलत खाना कहते हैं यह पहाड़ी से कुछ रोड पर स्थित हैं , तथा किबला के साथ एक कोण बनाती हैं,  किंतु यह निर्णय सही सिद्ध नहीं हुआ, और कुछ ही समय के बाद अकबर को राजधानी फतेहपुर सीकरी से हटानी पड़ी इसके पीछे पानी की प्रमुख कमी का कारण बताया गया है,  फतेहपुर सीकरी के बाद एक दरबार  पूरे समाज में घूमता रहता था, और इस प्रकार समाज के सभी स्थानों पर उचित ध्यान देना संभव हुआ, बाद में उसने 1585 में उत्तर पश्चिम भाग के लिए लाहौर को राजधानी बनाया,   सन 1599 में राजधानी वापस आगरा बनाई और अंत तक यहीं से शासन संभाला , आगरा शहर का नया नाम दिया गया अकबराबाद,  जो साम्राज्य की सबसे बड़ा शहर बना, शहर का मुख्य भाग यमुना नदी के पश्चिम तट पर बसा था, यहां बरसात के पानी की निकासी की सुंदर व्यवस्था थी,                                                                                             नालिया:-- नालों से परिपूर्ण व्यवस्था बनाई गई , लोधी समाज द्वारा बनवाई गई गारे मिट्टी से बनी नगर की पुरानी चारदीवारी को तोड़कर 1564 में नई बलुआ पत्थर की दीवार बनवाई गई, अंग्रेज इतिहासकार युगल ब्लेयर एवं ब्लूम के अनुसार इस लाल दीवार के कारण ही इसका नाम लाल किला पड़ा,  वे आगे लिखते हैं कि यह किला पिछले किले के नक्शे पर ही कुछ अर्धवृत्त आकार बना था,  शहर की ओर से इसे एक डोरी सुरक्षा दीवार घेरे है जिसके बाहर गहरी खाई बनी है इस दोहरी दीवार में उत्तर में दिल्ली के,  दक्षिण में अमर सिंह द्वार बने हैं, यह दोनों द्वारा अपने धनुषा कार  मेहराब रूपी आलो व बुर्ज  तथा लाल व सफेद संगमरमर पर नीली ग्लेज्ड टाइल्स द्वारा अलंकरण से ही पहचाने जाते हैं,  वर्तमान किला अकबर के पुत्र शाहजहां द्वारा बनवाया हुआ है , इसमें दक्षिणी और जहांगीरी महल और अकबर महल हैं,                                                             विवाह:-- अकबर के कछवाहा राजपूत राज भारमल ने अकबर के दरबार में अपने राज्य संभालने के कुछ समय बाद ही प्रवेश पाया था,  इन्होंने अपनी राजकुमारी का विवाह अकबर से करवाना स्वीकार किया था,  विवाह के बाद  मुस्लिम बनी और मरियम उज जमानी कहलाई,  उसे राजपूत परिवार ने सदा के लिए त्याग दिया,  और विवाह के बाद वह कभी आमेर  वापस नहीं गई,  उसे विवाह के बाद आगरा दिल्ली में कोई महत्वपूर्ण स्थान नहीं मिला था , बल्कि भरतपुर जिले का एक छोटा सा गांव मिला था,  उसकी मृत्यु 1623 में हुई थी उसके पुत्र जहांगीर द्वारा उसके सम्मान में लाहौर में एक मस्जिद बनवाई गई थी,  भारमल को अकबर के दरबार में ऊंचा स्थान मिला था , और उसके बाद उसके पुत्र भगवानदास और पुत्र मानसिंह भी दरबार के ऊंचे सामंत बने रहे,  हिंदू राजकुमारियों को मुस्लिम राजाओं से विवाह में संबंध बनाने के अकबर के समय से पूर्व ही प्रचलित  थे,  किंतु अधिकांश विवाहों के बाद दोनों परिवारों के आपसी संबंध अच्छे नहीं रहे , और ना ही राजकुमारियां कभी वापस लौट कर घर आई , हालांकिअकबर  ने इस मामले को पिछले प्रकरणों से अलग रूप दिया , जहां उन रानियों के भाइयों या पिता को पुत्रियों या बहनों को विवाह उपरांत अकबर के मुस्लिम ससुराल वालों जैसा ही सम्मान मिलता था,  सिवाय उनके संग खाना खाने और प्रार्थना करने के ,  राजपूतों को अकबर के दरबार में स्थान मिले थे सभी ने उन्हें वैसा ही अपनाया था,  सिवाय कुछ रूढ वादी  परिवारों को छोड़कर जिन्होंने इसे अपमान के रूप में देखा,  राजपूत परिवार रजवाड़ों ने भी अकबर के संग  संबंध बनाए थे,  किंतु विवाह संबंध बनाने की कोई शर्त नहीं थी,  दो प्रमुख राजपूत वंश मेवाड़ के सिसोदिया और रणथंबोर के हाड़ा वंश इन संबंधों से सदा ही हटते रहे , अकबर के प्रसिद्ध दरबारी राजा मानसिंह ने अकबर की ओर से एक प्रस्ताव  राजा सुरजन दहाड़ा के पास  भी लेकर गए जिसे सुरजन सिंह ने इस शर्त पर स्वीकार किया कि वे अपनी किसी पुत्री का विवाह अकबर के संग नहीं करेंगे , अंता कोई संबंध नहीं हुए, अधिकार सौंप कर सम्मानित किया गया,   रणथंभौर का स्नेह मोटा राजा उदयसिंह और जहांगीर को मारने की धमकी भी दीक्योंकि उदय सिंह ने अपनी पुत्री जगत गोसाई का विवाह अकबर के पुत्र जहांगीर से करने का निश्चय किया था,  अकबर ने यह ज्ञान होने पर सभी  फौजों को कल्याणदास पर आक्रमण हेतु भेज दिया , कल्याण दास हुसैना के संग युद्ध में मारा गया  और उसकी स्त्रियों ने जौहर कर लिया,  इस संबंध को राजनीतिक प्रभाव महत्वपूर्ण था,  हालांकि कुछ राजपूत स्त्रियों ने अकबर के हरम में प्रवेश लेने पर इस्लाम स्वीकार किया ,  साथ ही उनके संग संबंधियों को जो हिंदू ही थे दरबार में उचित स्थान भी मिले थे , इनके द्वारा जनसाधारण की ध्वनि अकबर के दरबार तक पहुंचा करती थी,  दरबार के हिंदू और मुस्लिम दरबारियों के बीच संपर्क बढ़ाने से आपसी विचारों का आदान-प्रदान हुआ और दोनों धर्मों में संभाव  की प्रगति हुई,  इससे अगली पीढ़ी में दोनों औरतों का संगम था, जिसने दोनों संप्रदायों के बीच सौहार्द को बढ़ावा दिय,  परिणाम स्वरूप राजपूत मुगलों के सर्वाधिक शक्तिशाली सहायक बने ,  राजपूत सेना अधिकारियों ने मुगल सेना में रहकर अनेक युद्ध किए तथा जीते,  इनमें गुजरात का 1572 का अभियान भी था,  अकबर की धार्मिक संस्था की नीति ने शाही प्रशासन में सभी के लिए नौकरियों और रोजगार के अवसर खोल दिए थे , इसके कारण प्रशासन और भी दृढ़ होता चला गया पुर्तगालियों से संबंध:-- 1556 में अकबर के गद्दी लेने के समय पुर्तगालियों ने महाद्वीप के पश्चिम तट पर  बहुत से दुर्ग व निर्माणकम्पनियाँ  लगा ली थी , और बड़े स्तर पर उस क्षेत्र में वाहन और सारी व्यापार नियंत्रित करने लगे थे,  उपनिवेशवाद के चलते अन्य सभी व्यापारी संस्थाओं को पुर्तगालियों की शर्तों के अधीन ही रहना पड़ता था , जिस पर उस समय के शासकों व व्यापारियों को आपत्ति होने लगी थी, , मुगल साम्राज्य के राजतिलक के बाद पहला निशाना गुजरात को बनाया ,और सागर तट पर प्रथम विजय पाई 1572 में किंतु पुर्तगालियों की शक्ति को ध्यान में रखते हुए, पहले कुछ वर्षों तक उसे मात्र फारस की खाड़ी क्षेत्र में यात्रा करने हेतु करताल नामक पास लिया जाता था,  सूर्य ग्रहण के समय मुगल और पुर्तगालियों की प्रथम भेंट हुई और पुर्तगालियों को मुगलों की असली शक्ति का अनुमान हुआ,  और फलता उन्होंने युद्ध के बजाय नीति से काम लेना उचित समझा,   पुर्तगाली राज्यपाल ने अकबर के निर्देशों पर उसे एक राज्यपाल राजदूत के द्वारा संधि प्रस्ताव भेजा , क्षेत्र से अपने हरम के अन्य मुस्लिम लोगों द्वारा मक्का को हज की यात्रा को सुरक्षित करने की दृष्टि से प्रस्ताव स्वीकार कर लिया,  1573 में गुजरात के प्रशासनिक अधिकारियों को एक फरमान जारी किया जिसमें निकटवर्ती दमन में गालियों को शांति से रहने दिया जाने का आदेश दिया था  इसके बदले में पुर्तगालियों ने अकबर के परिवार के लिए हज को जाने हेतु पास जारी किए थे,  1576 में अकबर ने याहा  के नेतृत्व में अपने हरम के अनेक सदस्यों सहित हाजियों का एक बड़ा जत्था हज को भेजा यह जत्था दो पौधों में सूरत से जिद्द बंदरगाह पर 1570 में पहुंचा और मक्का और मदीना को अग्रसर हुआ 1570 में 1580 के बीच चार और कारवां हज को रवाना हुआ , जिनके साथ मक्का मदीना के लोगों के लिए भेजे वह गरीबों के लिए थे,  यात्री समाज के आर्थिक रूप से निकले थे और इनके जाने से शहरों तक प्रशासन ने घर जाने का निवेदन किया, जिस पर हरम की औरतें  तैयार ना हुई , काफी विवाद के बाद उन्हें विवश होकर लौटना पड़ा, राज्यपाल को 1580 में आए यात्रियों की संख्या देखकर बड़ा अस्चर्य हुआ और उसने लौटते हुए मुगलों को यथासंभव अपमानित  भी किया,  इस प्रकरण के कारण अकबर को हाजियों की यात्राओं पर रोक लगानी पड़ी, 1584 के बाद यमराज के अधीनस्थ अधिकारियों की मदद से चढ़ाई करने की योजना बनाई, पुर्तगालियों से इस बारे में योजना बनाने हेतु दूत गोवा में अक्टूबर 1584 में स्थाई रूप से तैनात किया गया 1587 में हार का सामना करना पड़ा,  इसके बाद गठबंधन को धक्का पहुंचा क्योंकि जागीरदारों द्वारा में गालियों पर लगातार दबाव डाला जा रहा था,  जैसे-जैसे अकबर की  उम्र बढ़ती गई, वैसे-वैसे उसकी धर्म के प्रति रुचि बढ़ने लगी,  उसे विशेषकर हिंदू धर्म के प्रति अपने लगाव के लिए जाना जाता है,  उसने अपने पूर्वजों से बढ़कर  कई हिंदू राष्ट्र से शादी की थी,  इसके अलावा अपने राज में हिंदुओं को विभिन्न पदों पर आसीन किया |

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